प्रसाद में पौधा अभियान : जिलाधिकारी, बाँदा की अनूठी पहल

प्रसाद में पौधा अभियान : जिलाधिकारी, बाँदा की अनूठी पहल


बाँदा


पिछले कुछ वर्षों से हमने विकास का जो पथ अपनाया है उसके कारण विकास तो जो हुआ सो हुआ पर हमने इस चक्कर में प्रकृति का दोहन शुरू कर दिया।


भारतीय संस्कृति प्रकृति को 'माँ' मानकर चलने की थी पर हमने क्या किया? 


हमने प्रकृति को भोग्या मानकर उसके प्रति क्रूरता शुरू कर दी और इसके नतीजे में आज भारत से वन क्षेत्र ख़त्म होते चले गये और जिसके दुष्परिणाम बढ़ते तापमान, वर्षा की कमी आदि के रूप में हम आज भुगत रहें है ।


भारत में हर वर्ष वृक्षारोपण अभियान चलाये जातें हैं; मगर क्या होता है? जितने वृक्ष लगाए जाते हैं उनमें से केवल 10 प्रतिशत वृक्ष ही मुश्किल से बचते हैं और बाकी देखभाल के अभाव में नष्ट हो जाते हैं। सरकार हर साल ये अभियान चलाती है; हर साल पेड़ लगते हैं और होता कुछ नहीं है। उल्टा भारत में वनक्षेत्र का प्रतिशत बढ़ने के बजाये घटता जा रहा है।


इन्हीं सब से आहत होकर उत्तर प्रदेश का जिला बाँदा के जिलाधिकारी श्री हीरालाल ने एक अनूठी पहल की।


उन्होंने ये महसूस किया कि मंदिर में चढ़ाये गये या मंदिर से मिला हुआ प्रसाद को सब पवित्र मानते हैं, इतना पवित्र कि अगर वो जमीन पर गिर जाये तो भी लोग उसे प्रणाम कर सर से लगाते हुए ग्रहण करते हैं, कोई कभी प्रसाद को फेंकता नहीं है, कभी कोई उसका अनादर नहीं करता है. और इसलिये उन्होंने एक नए अभियान को जन्म दिया।


अभियान है "वृक्षारोपण" नहीं बल्कि "वृक्ष जियाओ अभियान" 


मतलब केवल वृक्षारोपण नहीं बल्कि रोपे गये उस पौधे को बचाने का अभियान, उसे बड़ा करने का अभियान और इस अभियान में उन्होंने मंदिरों को जोड़ा। स्वयं मंदिरों में जाकर एक-एक पुजारी से मिले और उन्हें तथा मंदिर आने वाले भक्तों को इस बात के लिए तैयार किया कि प्रसाद के रूप में वो मंदिरों में फूल, माला, नारियल, लड्डू के साथ एक पौधा भी चढ़ाएं और बाद में उन्हीं पौधों को पुजारी प्रसाद के साथ भक्तों को दें।


जब कोई पौधा प्रसाद रूप में मिलेगा तो कोई उसका अनादर नहीं करेगा, उसे इधर-उधर फेंकेगा नहीं ये सोचकर कि ऐसा करना प्रसाद का अपमान करना है और उस पौधे रुपी प्रसाद को जब कहीं लगायेगा तो उसकी देखभाल भी करेगा और उसका सम्मान भी करेगा।


इस अनूठी पहल को मंदिर के पुजारियों ने आगे आकर सहर्ष किया है।


बाँदा के जिलाधिकारी ने विकास का एक नया पथ चुना है जो उस शाश्वत भारतीय दर्शन का मूर्त रूप है जो कहती है कि एक वृक्ष लगाओ तो कई पीढ़ियाँ तर जाती है, जो कहती है कि वृक्ष का पालन-पोषण उस तरह करो जैसा एक पिता अपने पुत्र की करता है।


बुन्देलखण्ड देश के पिछड़े हिस्सों में गिना जाता है और ऐसे इलाके के रूप में चिन्हित हैं; जहाँ गर्मी में तापमान 48 डिग्री तक पहुँच जाती है और बारिश का औसत हरेक वर्ष घटता ही चला जा रहा है; ऐसे में वृक्षों को जिलाने का जिलाधिकारी का अभियान "भागीरथ प्रयास" है जिसे सारे देश को मॉडल रूप में स्वीकार करना चाहिए।


प्रकृति को माँ रूप में देखने की दृष्टि देने और हरेक व्यक्ति को पर्यावरण मित्र रूप में तैयार करने के जिस अभियान को जिलाधिकारी, बाँदा चला रहे हैं; यकीन जानिये अगर इस काम को मिलकर अगर सारे देश ने करना शुरू दिया तो सब कुछ ठीक हो जायेगा।