यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट का झटका, रद्द किया ये आदेश
नई दिल्ली
- उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने निजी उद्योगपतियों को लेकर प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2016 जारी नीतिगत आदेश को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) द्वारा इस बाबत 6 मार्च को दिए गए आदेश को निरस्त करते हुए यह फैसला दिया है. दरअसल, यह मामला प्राकृतिक तालाबों और नहरों को नष्ट कर नए तालाब या वाटर बॉडीज (जल संग्रह) बनाने से जुड़ा है.
*UP सरकार ने जारी किया था यह आदेश*
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने वर्ष 2016 में प्राकृतिक तालाब और नहरों को लेकर एक नीतिगत आदेश जारी किया था. इसके तहत निजी क्षेत्र के उद्योग को नए जगह पर तालाब और नहर बनाने की शर्त पर प्राकृति वाटर बॉडीज को नष्ट करने का अधिकार दिया गया था. ग्रेटर नोएडा के सैनी गांव निवासी और अधिवक्ता-सह-पर्यावरणविद् जितेंद्र सिंह ने अथॉरिटी के इस नीतिगत आदेश को NGT में चुनौती दी थी.
NGT ने इसी साल मार्च में इस पर अपना फैसला दिया था, जिसमें अथॉरिटी के फैसले को सही ठहराया गया था. जितेंद्र सिंह ने दलील दी थी कि प्राकृतिक जल संचयन क्षेत्र को नष्ट करने से संबंधित क्षेत्र में जैव विविधता के साथ ही वहां की हरियाली पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. हालांकि, NGT ने अथॉरिटी के हलफनामे पर भरोसा किया और उनकी अर्जी को खारिज कर दी थी. जितेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में NGT के फैसले को चुनौती दी थी.
*सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख*
जितेंद्र सिंह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने विचार योग्य माना और अथॉरिटी के खिलाफ फैसला दिया. जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने NGT के फैसले को निरस्त करते हुए यूपी सरकार के इस आदेश को संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करार दिया. पीठ ने कहा कि स्थानीय वाटर बॉडीज को नष्ट करने वाली योजना को बरकरार नहीं रखा जा सकता है, फिर चाहे इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था ही क्यों न की जाए.
*'प्रतिकूल प्रभावों से नहीं बचा जा सकता'*
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में कहा, '…हालांकि, यह संभव है कि किसी दूसरे स्थान पर तालाब या वाटर बॉडी बनाए जाएं, लेकिन इसके बावजूद पूर्व में मौजूद तालाबों के नष्ट होने से पर्यावरण के नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. इससे स्थानीय पर्यावरण भी स्थायी तौर पर बदला जाएगा. ऐसे में पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की गारंटी नहीं है.' सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि प्राकृतिक वाटर बॉडी को नष्ट करने से जैव विविधता और पेड़-पौधों पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ेगा.